जिंदगी
जिंदगी नाराज़ मत हो
हम मन के बहुत सच्चे थे
चापलूसी मैं थोड़े कच्चे थे
दर बदर की ठोकर खायी है
तभी तो दुनियादारी, दिमाग मैं घुस पायी है
सच्चे का मुँह काला, झुठे का बोल बाला है
हम खुद ही खफा है खुदपर
ना तो दुनियदारी समझ मैं आयी, ना तो खुदा की खुदाई,
"जिंदगी" तुम भी तो ख़फा हो हमसे
किस किस की नाराज़गी, कब तक मुझे झेलनी है
बस.. ..
मौत बाहोंमे आख़री साँस लेनी है
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