Kavita Mazhi

Wednesday, April 12, 2023

 

जिंदगी

जिंदगी नाराज़ मत हो
हम मन के बहुत सच्चे थे 
चापलूसी मैं थोड़े कच्चे थे 
दर बदर की ठोकर खायी है 
तभी तो दुनियादारी, दिमाग मैं घुस पायी है  
सच्चे का मुँह काला, झुठे का बोल बाला है 
हम खुद ही खफा है खुदपर 
ना तो दुनियदारी समझ मैं आयी, ना तो खुदा की खुदाई,
"जिंदगी" तुम भी तो ख़फा हो हमसे 
किस किस की नाराज़गी, कब तक मुझे झेलनी है
बस.. .. 
मौत बाहोंमे आख़री साँस लेनी है  

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